मूंगफली के छिलकों से बनाई जाती है बैटरियां
मूंगफली के छिलकों की पावर
शायद आपको यह बटन सैल बैटरियां आपको कुछ खास न लगे जब तक आपको यह पता न लगे की यह किस चीज से बनी है।
सैनिगल की राजधानी डकार की इस लैब में यह बैटरियां बनी है मूंगफली के छिलकों से।
इस किस्म के बायोमास को उच्च किस्म की सामग्रियों में बदलना यह शोध का नया क्षेत्र है।वैज्ञानिक समुदाय दो तीन साल से इस पर काम करता रहा है।
पर यहां अफ्रीका में इसकी शुरुआत सैनिगल के वैज्ञानिकों ने ही की थी।
देश में 60% से ज्यादा आबादी मूंगफली की खेती करती है।
ये बाजारों से मूंगफली के छिलकों को
रॉ मैटेरियल के रूप में इकठ्ठा करते तथा उन लोगों को यह भी बताते की ये इन छिलकों से इन बैटरियों का निर्माण करते है।
कैसे बनती है यह बैटरियां?
ये बैटरियां मूंगफली के छिलकों का पाउडर बना कर पानी में बिगो कर रखने और फिर इसे फिल्टर करके एक तरल पदार्थ तैयार किया जाता है इसमें कुच्छ खास किस्म की चीजे मिलाकर इसको बैटरी के पॉस्टिव चार्ज की तरह तैयार करते है। जिसे ज्यादा तापमान की धूप में दिखाकर जिंक ऑक्साइड को भाषपीत करके जिंक तैयार कर लिया जाता है और फिर यही जिंक ऊर्जा को जमा कर सकता है।
इस प्रकार इन बैटरियों का निर्माण होता है।
इनके क्या लाभ है?
यह बैटरियां echo फ्रेंडली होती है। सामान्य लिथियम आयन बैटरी जैसी ही इनकी समर्थय भी होती है। लेकिन नुकसान कच्छ नहीं होते।
इन लिथियम आयन बैटरियों में और चीजों के अलावा कोबाल्ट भी होता है जिसकी खुदाई कोंबो की खतरनाक खदानों में बच्चों के द्वारा कराई जाती है। इसके अलावा लिथियम और कोबाल्ट के भंडार सीमित है। लिहाजा मूंगफली बैटरी के फायदे यह है की बो कोबाल्ट के बिना तैयार की जाती है और आसानी से नष्ट की जाती है और सस्ते में भी बन जाती है। Echo फ्रेंडली बैटरियों का इस्तेमाल सैनिगल के लिए बहुत फायदेमंद है। देश के 40 फीसदी घरों में बिजली नहीं है बो बैटरियों पर निर्भर है या सौर ऊर्जा कैसे बैकल्पिक स्त्रोतों पर निर्भर है,
या उनके पास किसी भी प्रकार की ऊर्जा नहीं है। प्रयबरण विशेषज्ञ के मुताबिक सप्लाई में एक बड़ा गैप है। इस गैप को भारने के लिए हमें आगे बड़कर बायोमास जैसे ऊर्जा संसाधनों के बारे में सोचना होगा।
बायोमास ऊर्जा अहम है क्योंकि सैनिगल मूंगफली का एक प्रमुख उत्पादक है।और मूंगफली के छिलकों की सप्लाई बहुत है।
कासामान जैसे इलाकों के लिए जहां बायोमास बड़ी मात्रा में उपलब्ध है वहां इस ऊर्जा स्त्रोत का मौजूदा गैप
को बहुत हद तक भरने में काम आएगा। शुरुआता परीक्षण में शोधकर्ता इन बैटरियों का इस्तेमान रिमोट कंट्रोल तथा मोबाइल फोन चार्ज करने से किया करते थे। लेकिन उनका उत्पाद अभी बाजार में आने के लिए तैयार नहीं है। शोधकर्ता का कहना है हमे अभी लैब में तमाम प्रक्रियाओं को और भी ऑप्टिमाइज करने की जरूरत है। ताकि तमाम मानकों को पूरी तरह नियंत्रित किया जा सकें। जिससे की सिस्टम ठीक तरह से काम करें। तभी यह बाजार के लिए तैयार होगा।
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धन्यवाद!
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